२९२ ॥ श्री सीता राधिका कमला जी की चन्द्रिका॥
( एक ही बाणी)
पद:-
श्री सीता राधिका कमला जी की हम चन्द्रिका कहावैं जी।
भूषन बसन सँवारि मातु जब हमको भाल लगावैं जी।
छबि श्रृंगार छबि को बरनै शरद शेष लजावैं जी।
हेम क तन मम रतन जड़ित बहु रंग प्रकाश देखावैं जी।
सतगुरु करि जप की बिधि जानैं ते यह मारग पावैंजी।५।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै सुधि बुधि तहां भुलावै जी।
नाम कि धुनि रग रोंवन होवै सुर मुनि मिलन को धावैं जी।
अमृत पियै सुनै घट अनहद मन्द मन्द मुसक्यावै जी।
नागिनि जगै चक्र षट घूमैं सातौं कमल फुलावै जी।
लोक वेद तीरथ ब्रत मुद्रा आय के सीस नवावै जी।१०।
तीनों मातु सामने सोहैं पल भर नहिं बिलगावै जी।
अन्त त्यागि तन अचल धाम ले फेरि न जग चकरायो जी।१२।