२९३ ॥ पं. श्याम नाथ भ्क्त जी॥
पद:-
भजिये परम तत्व रंकार।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि लैकर तन मन प्रेम में वार।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै कर्म होंय दोउ छार।
अनहद सुनो देव मुनि भेटैं कर दोनों गले डार।
अमृत पिओ कहो का मुख से गगन ते जारी धार।५।
नागिनि जगै चक्र हों सोधन फूलैं कमल निहार।
सुखमन स्वांस विहंग मारग ह्वै निज घर जाय सिधार।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख में निशि वार।
जियतै मुक्ति भक्ति हो करतल कौन सकै तब टार।
निर्भय औ निर्बेर मस्त खेलौ जगत मँझार।
तीनौ माता नित्य खिलावैं दिब्य भोग लै थार।१०।
मानुष क तन पाय न चूकौ मानौ बचन हमार।
ऐसा समय फैरि नहि मिलहै आपु क लेह संभार।
तब जीवन को मार्ग बताय के करि पैहौ उद्धार।
यहां वहां फहराय पताका धुनि हो जय जय कार।
छोड़ि शरीर जाहु साकेतै भक्तन माहिं शुमार।१५।