२ ॥ श्री जनक जी ॥
पद:-
मन तुम राम नाम उर धारो ॥१॥
शान्ति शील संतोष दीनता प्रेम से बचन उचारो ॥२॥
काम क्रोध मद लोभ मोह को जीति के फेरि सुधारो ॥३॥
सत्य शब्द में सुरति लगाओ जाको नाम रकारो ॥४॥
अनहद नाद होत परकाशा सुन्दर रूप निहारो ॥५॥
जीवन मुक्त जियत में होकर आप तरो औ तारो ॥६॥
दिव्य रूप ह्वै बैठि सिंहासन राम के धाम सिधारो ॥७॥
अजपा जाप जपो जिह्वा बिनु कहत जनक श्रुति सारो ॥८॥