३ ॥ श्री भद्र सेन जी ॥
पद:-
नाथ नाथ नाथ नाथ नाथ नाथ नाथ नाथ ॥१॥
दया सिन्धु करुणा सिन्धु दीन बन्धु दीना नाथ ॥२॥
पाप ताप तपत रहत दीन दुखी हौं अनाथ ॥३॥
हृदय माँहि पाँच चोर कृपा कीजै छोड़ैं साथ ॥४॥
नाम रूप लीला धाम श्याम वरण सीतानाथ ॥५॥
अर्थ धर्म काम मोक्ष देत करत हौ कृतार्थ ॥६॥
नाद शब्द होत रहै रूप तेज मुकुट माथ ॥७॥
शरण शरण शरण तेरी आय नाथ गहो हाथ ॥८॥
छन्द:-
राम मंगल दास तेरा नाम कहते संत जन ॥१॥
श्री गुरु जी के चरण सेवा में रहता था मगन ॥२॥
दुनियां की मौज उड़ा चुका करता है अब प्रभु का भजन ॥३॥
किरपा हुई सरकार की अब छूटिगा आवागमन ॥४॥
दोहा:-
नाम कृपा ते ह्वै गये, नारद शिव ब्रह्मादि ।
वाल्मीकि शुकदेव ध्रुव, पवन तनय सनकादि ॥१॥
प्रीति करै तो अस करै, जैसे पानि से मीन ।
बिना पानि जीवै नहीं, रहै सदा लवलीन ॥२॥
गणपति शेष महेश के, नाम रटन धुनि लागि ।
भद्र सेन ते धन्य नर, हरि चरनन में लागि ॥३॥