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३६२ ॥ श्री दरीना शाह जी ॥

(मुकाम मुज़फ़फ़र पुर)

 

पद:-

हैसब में औ सब से न्यार करो सतगुरु हो मगन।

लीजै जियतै में निज घर निहार करो सतगुरु मग्न मिलै।१।

 

शेर:-

नाम कि तान रोम रोम जहां जारी हो।

ध्यान परकाश समाधी तो सुधि बिसारी हो॥

 

कर्म होवैं शुभा शुभ छार करो सतगुरु मग मिलै।२।

 

शेर:-

देव मुनि आय मिलैं अनहद सुनो घट में सुधर।

पान अमृत क करौ कैसा स्वाद आवै मधुर॥

 

नहिं बरनत बनै कछु यार करो सतगुरु मग मिलै।३।

 

शेर:-

जगै कुण्डलिनी शक्ति चक्र छइउ बेधैं तब।

कमल चट फूलि महक देंय बड़ी सातौं तब॥

 

प्रेम तन मन में हो एक तार करो सतगुरु मग मिलै।४।

 

शेर:-

राम औ कृष्ण बिष्णु शक्तिन सहित आ जावैं।

हर दम सन्मुख में छटा छवि श्रृंगार छा जावै॥

 

लखौ नयनन बहै जल धार करो सतगुरु मग मिलै।५।

 

शेर:-

पांचों तत्वन के रंग न्यारे न्यारे दर्शैं।

कभी रंग रंग के कुम कुमे प्यारे बर्षैं॥

 

दगैं गोला औ छूटैं अनार करो सतगुरु मग मिलै।६।

 

शेर:-

घटा घहराय कभी आय दामिनी दमकैं।

मेह बरसै औ कभी साफ़ सितारे चमकैं॥

 

नाना कौतुक होंय निशि बार करो सतुगुरु मग मिलै।७।