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३७४ ॥ श्री साहेब सहाय जी ॥

(मु. अहमद नगर, जि. रायबरेली)

पद:-

सब विश्व तुम में है बसा सव विश्व में तुम हो बसे।

सतुगुरु करो पावो दुख जाल में काहे फंसे।

धुनि ध्यान लय परकाश हो भागैं असुर फिर नहिं चसे।

अमृत पिओ अनहद सुनो सुर मुनि बिहँसि उर में लसे।

सन्मुख में राधे श्याम मुरली अधर धर हम दम हँसे।५।

 

दीनता औ शान्ति गहि तन मन को जिन जियतै कसै।

ते प्रेम पद करतल किया सूरति शबद पर धरि ठसे।

मस्त मुख से क्या कहैं अनमोल पाकर के रसे।८।