३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥
(मुकाम काशी - स्वामी रामानन्द जी के शिष्य)
राम नाम सम नाम नहिं, अवध धाम सम धाम।
तप धन सम कोइ धन नहीं, पर स्वारथ सम काम।
नर तन सम कोइ तन नहीं, अन्न वस्त्र सम दान।
गाजी कह सतगुरु कह्यौ, मम मन लीन्ह्यौ मान।
राम नाम के बीच में, राजत राधे श्याम।
गाज़ी कह भक्तों गुनो, सुन्दर शोभा धाम।६।