३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (१)
परम परा लै चाटौ भक्तों परम परा लै चाटौ।
पढ़ि सुनि लिखि धरि इधर उधर चलि बातैं गढ़ गढ़ छांटौ
अन्त समय जब लेखा लेहैं केहि बिधि खाता काटौ।
नीक कहैं तो नेक न मानत नैन फेरि के डाटौ।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानौ तन मन प्रेम में सांटौ।
गाज़ी कहैं अन्त निज पुर हो आवा गमन को काटौ।६।
दोहा:-
मन को बस में लेहु करि, निरखौ सीता राम।
गाजी कह हर दम सुनौ, एक तार धुनि नाम॥
पद:-
नर तन भजन बिना बेकार।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो छोड़ो जग व्यौहार।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शै से रंकार।
अमृत पिओ सुनो घट बाजा सुर मुनि करैं दुलार।
नागिन जगै चक्र सब बैधैं सातौं कमल फुलार।५।
भाँति भाँति की गमकैं आवैं तन मन हो मतवार।
सिया राम की झाँकी सन्मुख जो सब के सरकार।
अन्त त्यागि तन हरि पुर बैठो गाज़ी कहैं पुकार।८।