३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥(२४)
पद:-
विद्या से विद्वान समझता मूरख मूरखता से।
गाज़ी कहैं बात मन मानी बैसे वाको भासे॥
चौपाई:-
बीज मंत्र खुलि जावै ताता। सो तो ब्रह्म रंध्र ह्वै जाता।
श्री गुरु के मुख की यह बानी। गाज़ी कहैं लीन हम मानी।
पढ़ा नहीं मैं एको अक्षर। श्री गुरु किरपा भागै मच्छर।
सब विश्वास केर है कामा। गाज़ी कहैं भजौ हरि नामा।
मंत्र परम लघु महामंत्र यह। र रंकार जानो सुर मुनि कह।५।
यह बिधि शिव को सिया बतायो।
शिव छकि पियो अमर पद पायो।
शिव से सुखद देव गे पाई। अजर अमर वै रहत सदाई।
प्रेम भाव जा के उर आई। गाज़ी कहैं तौन बनि आई।९।
पद:-
श्री गुरु रामानन्द जी, जो मोहिं दीन लखाय।
सोई तुम को हम यहां, आय के दीन बताय।
या में संशय जो करै, ता की यही उपाय।
शान्ति दीन ह्वै लेय सुनि, वह फिर घर को जाय।
गाज़ी कह हरि भजन बिन, ऐसै चक्कर खाय।
मूरख के कोइ बचन पर, ख्याल न कीजै भाय।६।