३८३ ॥ श्री सीता जी ॥
(अद्वैताचार्य्य जी की धर्म पत्नी)
पद:-
सुनो नर नारि सतगुरु करि भजो प्रिय श्याम लखि पावो।१।
ध्यान परकाश लय धुनि हो देव मुनि संग बतलावो।२।
सुनो अनहद पिओ अमृत रहौ निर्वैर मुसक्यावो।३।
कहैं सीता अन्त तन तजि न जग में फेरि चकरावो।४।