४२९ ॥ श्री स्वानासर बारी ॥
पद:-
यह सब से बिनती करत स्वानासर बारी।
सतगुरु करि सुमिरन सिखौ लेहु मन मारी।
दहिने कर चक्र को लिये खड़े बनवारी।
हर दम सन्मुख रहैं करैं रखवारी।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधि कर्म गति टारी।५।
सुर मुनि नित आवैं मिलन कहैं बलिहारी।
अमृत पी अनहद सुनो मधुर गुमकारी।
नागिनी चक्र और कमल जगैं जयकारी।
तन त्यागि चलौ साकेत जहां सुख भारी।
तब छूटै गर्भ का खेल रहौ चुप धारी।१०।