४३० ॥ श्री जोधा सिंह जी ॥
पद:-
सतगुरु करि हरि को भजो लेव मन मारी।
रथ युद्ध में हांकत अरजुन का बनवारी।
हैं ध्वजा पर राजत पवन तनय बलधारी।
रथ पर हैं पारथ बैठि धनुष सर धारी।
क्या घोड़ा चार हैं मचे स्वेत बलधारी।५।
रथ चमकै चम चम चलै उठै झनकारी।
यह कुरू क्षेत्र रण भूमि में युद्ध मचारी।
जो जूझि जांय तहं सूर दिब्य तन धारी।
चढ़ि चलैं यान बैठें बैकुण्ठ मंझारी।
सुर मुनि नभ ते जै करैं सुमुन बरसारी।१०।
बाजा सब देंय बजाय जीति की बारी।
यह लीला लखि लखि हम हूँ भये सुखारी।१२।