४६७ ॥ श्री भूलन शाह ॥
पद:-
भूलन शाह भूलि नहिं सकते। रज तम अन्न कि ओर न तकते।२।
सूरति को लै सब्द में ठंसते। सारे चोर शांति नहिं खंसते।४।
गगन ते अमृत झरता चखते। कर्म शुभाशुभ लै में जरते।६।
सुनत नाम धुनि रूप को लखते। अन्त छोड़ि तन निज पुर चरते।८।
पद:-
भूलन शाह भूलि नहिं सकते। रज तम अन्न कि ओर न तकते।२।
सूरति को लै सब्द में ठंसते। सारे चोर शांति नहिं खंसते।४।
गगन ते अमृत झरता चखते। कर्म शुभाशुभ लै में जरते।६।
सुनत नाम धुनि रूप को लखते। अन्त छोड़ि तन निज पुर चरते।८।