४६७ ॥ श्री भूलन शाह ॥(२)
शुभ कामन में मन नहिं लागै ते निकाम नर नारी जी।१।
भूलन शाह कहैं जम पीटैं दै दै भोंडी गारी जी।२।
किरचिल के किरचिल हैं होते धिक धिक पितु महतारी जी।३।
मरैं नर्क में पड़ैं जाय के जहँ हर दम दुख भारी जी।४।
जम गण खोंटी गारी देते। कर जोरैं रोवैं सुनि लेते॥
सतगुरु करि के जे हैं चेते। भूलन कहैं सुखी भे तेते॥