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६२७ ॥ श्री राजेन्द्र सिंह जी राठौर ॥

पद:-

कहाते साधु हैं स्वाद किया बश में नहीं मन को।

तरा तर माल खा खा के बनाया खूब निज तन को।

बसन बढ़िया करैं धारन भजन हर वक्त है धन को।

बुद्धि ते हीन खल पापी नहीं भय नेक यम गन को।

बिना सुमिरन चलैं नरकै न मिलती कल जहां छन को।

कहैं राजेन्द्र तन बिरथा किया जग आय कर जन को।६।

 

दोहा:-

आ. ऊ. म. परसन्न हों, सुर मुनि शक्ती जान।

राम नाम जे जन जपैं, करैं बड़ा सन्मान।१।