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७५ ॥ श्री षड़ानन जी ॥


गजल:-

अर्ज सब से है मेरी भक्त कहाने वाले ।

नेम से जल से तीनि काल नहाने वाले ॥१॥

वर्त्त करते हैं और तीर्थ मझाने वाले ।

दिल को परधन से परदारा से हटाने वाले ॥२॥

देखि दुखियों को दुखी आप होजाने वाले ।

धर्म करते हैं और वेद पढ़ाने वाले ॥३॥

पूजा ठाकुर कि करैं भोग लगाने वाले ।

माला जप यज्ञ विनय पाठ सुनाने वाले ॥४॥

नाम रटते हैं और नाम बताने वाले ।

चलते बैठे हैं खड़े राम गुन गाने वाले ॥५॥

सुनते लेटे हैं उठै नाम रटाने वाले ।

दया दीनों पै करैं यश को कमाने वाले ॥६॥

धुनी तपते हैं औ भस्म चढ़ाने वाले ।

केश राखे हैं औ केश मुड़ाने वाले ॥७॥

सेवा भक्तों कि करैं दास कहाने वाले ।

द्वैत के भाव को इस तन से हटाने वाले ॥८॥

शान्ति शन्तोष शील धैर्य धराने वाले ।

प्रेम करते हैं सत्य दीन हो जाने वाले ॥९॥

मस्त रहते हैं सदा प्रेम लगाने वाले ।

राम का नाम रोम रोम उठाने वाले ॥१०॥

पिपीलिका मीन विहँग मार्ग सुझाने वाले ।

धारना ध्यान समाधि के लगाने वाले ॥११॥

प्रभू के चरणों में तन मन को बसाने वाले ।

सूरति औ शब्द से साकेत को जाने वाले ॥१२॥

जियत में मुक्त हुये भक्ति को पाने वाले ।

उलटि कै दृष्टि को त्रिकुटी पै लगाने वाले ॥१३॥

ज्योति की दर्श छटा ब्रह्म की पाने वाले ।

नाम औ रूप लीला धाम लखाने वाले ॥१४॥

रूप हर दम ही लखैं नाम के पाने वाले ।

छा चक्र सात कमल पांच मुद्रा बताने वाले ॥१५॥

ध्वनी अनहद कि सुनैं योग सिखाने वाले ।

षड़ानन धन्य धन्य धन्य मनाने वाले ॥१६॥