८६ ॥ श्री महात्मा प्राणनाथ जी ॥
(विन्ध्याचल)
दोहा:-
श्री काली श्री लक्ष्मी, श्री सरस्वति मात ।
अष्ट भुजा विन्धेश्वरी, जग में हो विख्यात ॥१॥
श्री दुर्गा माता मेरी, श्री ज्वाला महरानि ।
श्री पाटेश्वरि अम्बिका, विद्या बुध्दि की खानि ॥२॥
श्री लोटनी अवध की, श्री सुन्दरी दयाल ।
श्री जालिपा आप तो, करती सबै निहाल ॥३॥
सब शक्तिन से विनय यह, इहै देव वरदान ।
प्राणनाथ यह कहत हैं, सदा करो कल्यान ॥४॥