८५ ॥ श्री तुम्बरू गन्धर्व ॥
दोहा:-
यह खेल उसी का सारा। जाको है नाम रकारा॥
वह सोऽहं और ओंकारा। वह अर्ध चन्द्र सरदारा ॥१॥
बिन रसना करै पुकारा। बिन स्वर के शब्द उचारा ॥
सब के अन्तरगत प्यारा। फिर सब से रहता न्यारा ॥२॥
निर्गुण सर्गुण निरंकारा। वह हद्द बेहद्द मँझारा ॥
जब कृपा करैं करतारा। तब हर दम हो दीदारा ॥३॥
कोई जानै जानन हारा। बाकी गति अगम अपारा॥
तुम्बरू चरण चित धारा। प्रभु राखो लाज हमारा ॥४॥
दोहा:-
सोऽहं रेफ रकार औ अर्धचन्द्र ओंकार ।
सर्गुण निर्गुण निराकार व सब में सबसे न्यार ॥१॥