॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल ३२ ॥ (विस्तृत)
४३०. बहुत कठिन काम है। बरछी की नोक पर चलना, छूरे की धार पर चलना, आगी में कूद परना सरल है। भगवान की तरफ झुकना, कोटिन में कोई एक पाता है।
४३१. अन्धे मियां ने लिखाया है:-
शेर: हर जगह मौजूद हैं, पर वह नजर आते नहीं।
मन के साधन के बिना, उनको कोई पाते नहीं॥
४३२. मन के संगी भूख प्यास जबान इच्छा हैं। यह सब चोर चालाक हैं। पानी से अधिक सरबत, सरबत से अधिक दूध, रोटी से अधिक पूरी खाते हैं। अच्छी चीज के लिए पेट में जगह बनाये हैं, रूखी सूखी के लिये पेट में जगह नहीं है। तब शुभ काम कैसे हो? बिना मन काबू भये गती नहीं होती है। मन तन को चलाने वाला ड्राईवर है। अच्छी जगह ले जायेगा तो ठीक काम होगा। खराब जगह ले जावेगा तो खराब काम होगा। सारा खेल मन का है। इसका फल जीव को भोगना पड़ता है।
४३३. शंकर जी का चारि अच्छर का ११ माला मन्त्र में आधा घंटा लगता है। मन लग जाने से शंकर जी सब काम पूरा करते हैं। कई औरतें मर्द इससे धनी हो गये। महा गरीब थे कुछ पढ़े न थे।
' ओ ँ क्ली ँ जूँ स: '
११ माला से शंकर जी सब कुछ देते हैं। यह सिद्ध मंत्र है। सिर्फ आधा घन्टा लगता है। मन मंत्र से भागे नहीं बस काम हो जाय। अमोघ मंत्र है। अहीर, कुरमी, गडरिया, मुराऊ जपते हैं, उनको सब देवी देवताओं के दर्शन होते हैं। पढ़े नहीं हैं।
४३४. हम तो ११ बजे सोया करते थे। २ बजे उठते थे। अस्नान करके १ माला ब्रह्म गायत्री १० माला राम मंत्र ५ माला जानकी मंत्र जपा करते थे। यह जप रात्रि में होता है। तब काम होता है। दुनिया जागी मन भागी।
४३५. तमाम भक्त शंकर जी, दुर्गा जी, सारदा जी, गणेश जी, हनुमान जी का पूजन करके अजर अमर हो गये हैं। सब कहँू (कहीं) जाने की सक्ति (शक्ति) है। जब अपने को सब से नीचा मान लो तब मिलते हैं।