॥ वैकुण्ठ धाम के अमृत फल ३५ ॥ (विस्तृत)
४६१. घर में जो तुम्हारे आधीन हों उनको खवा कर खाओ। घर में न खवा सके तो बाहर खवा दो।
४६२. दान पुण्य, पहले (पुराने समय में) देने वाले (तथा) लेने वाले ही जानते थे। अब दिखावा है। कोई भूखा हो खवा दो १० गुना मिलेगा गरीब को खवाने से १० गुना बढ़ेगा।
४६३. मुरदा ज्ञान वाक्य ज्ञान इनसे फायदा न होई।
४६४. भजन तो घर में ही होता है। सबको खवाकर खावे। भिखारी आवे, दे। घर छोड़े भजन न बनी। घर छोड़े काम न बनी। घर छोड़ने से ढोंग है।
४६५. घूर बन जाओ, बिना खता कसूर कोई चार बात कहे, सहन कर लो हाथ जोड़ दो।
४६६. भक्त को भगवान कोढ़ी, अन्धा, लूला, लंगड़ा, दरिद्री - जैसा चाहे रक्खंे - भक्त प्रसन्न रहता है। स्मरण ध्यान न छूटे।
४६७. मूड़ मुड़ाने या दाढ़ी रखने, कपड़ा रंगने, दंड कमन्डल रखने से कुछ न होई।
४६८. ८ वर्ष मे बालक का यज्ञोपवीत होना चहिए।
४६९. जैसे कंकरीली, पथरीली भूमि में बीज डालना व्यर्थ है, वैसे हृदय में अभिमान, कपट, राग, द्वेष, आदि विकार रहते जप तप पूजन पाठ करना व्यर्थ है। अभिमान रावण है, कपट मारीच है इनको मारे बिना प्रभु से सम्बन्ध जुड़ नहीं सकता। अत: पहले अपने को सबसे नीचा मानो। सहन शक्ति की बड़ी जरूरत है। चार बात बेखता बेकसूर कोई गाली कहे, हाथ जोड़ दे। कोई अपमान करे तुम्हें धक्का मारे, रंज न हो। तारीफ करे तो खुश ना हो।
४७०. परोपकार के समान कोई भजन नहीं है। भगवान से दोस्ती करो या दुनिया से - हर दशा में सात्विक वस्तु का प्रयोग करो। नेक कमाई का अन्न, हाथ पिसा आटा, मूंग छिलकादार दाल, परवल, तरोई, चौराई, बथुआ, टिंडा, जीरा घी से छौंक दो। बढ़िया कीमती भोजन-कपड़ा, बड़े आदमी की संगत बुरी है।
४७१. सर्द (ठण्डी) वाली चीजें पेशाब लाती हैं। बादी दस्त साफ नहीं लाती। कड़ुआ, खट्टा, दिल दिमाग की ताकत खीचतीं हैं। पालक पेट साफ रखती है। मीठी चीजें मन और जबान को लबरा (लालची) बना देती है, जिससे मन भजन में बाधा डालती हैं।
४७२. शुद्ध भोजन से सब बीमारी हट जाती है।
४७३. आंख पिराती (दर्द करती) हो (तो) गरी टुकड़ा करके पेट भर खवा दो बाद में मिश्री। ५० बर्ष तक आंख न पिरावे।
४७४. सौंफ के सेवन से आँख की रोशनी कभी नहीं जाती। बहुत अच्छी दवा है। पुराने वैद्य हकीम का परहेजी भोजन बना रहे।