२४ ॥ श्री राधास्वामी जी ॥
दोहा:-
सूरति शब्द के खेल को जानि लेय ह्वै दीन ।
तब जग में आवै नहीं सत्य वचन कहि दीन ॥१॥
करै गुरु के ध्यान को तन मन प्रेम लगाय ।
मुक्त जियत में होय सो, जाय भक्ति को पाय ॥२॥
दोहा:-
सूरति शब्द के खेल को जानि लेय ह्वै दीन ।
तब जग में आवै नहीं सत्य वचन कहि दीन ॥१॥
करै गुरु के ध्यान को तन मन प्रेम लगाय ।
मुक्त जियत में होय सो, जाय भक्ति को पाय ॥२॥