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५२ ॥ श्री रैदास जी ॥


दोहा:-

सुर मुनि सब के दरस हों श्री गुरु परभाव ।

दिन पर दिन आनन्द हो जैसे तन को ताव ॥१॥

सब के घर में धरे हैं भांति भांति के वित्त ।

सूरति लागै शब्द में तब देखै वह नित्त ॥२॥

श्री गुरु महाराज जी रामानन्द हमार ।

सूरति शब्द के खेल को कीन्हों जगत पसार ॥३॥


राग कहरा:-

सुमिरन बिन मारै यम भाला सुमिरन बिन ॥१॥

मात पिता भ्राता भगनी को मानत नाहीं मतवाला सुमि० ॥२॥

माता धन्य गर्भ में राख्यो प्रगट भयो तब कसपाला सुमि० ॥३॥

हँसि दुलराय उठाय खेलावैं कहैं वचन मीठे लाला सुमि०॥४॥

भोजन वसन की सुधि नहिं भूलै तेल लगावैं धरि प्याला सुमि० ॥५॥

हरदम तुम पर सूरति राखैं ज्ञान ध्यान तुमहीं लाला सुमि० ॥६॥

सेई सयान कीन जब तुमको तब तुम बतलावत टाला सुमि० ॥७॥

ब्याह भयो तब अति बौराने पत्नी बन गई जयमाला सुमि० ॥८॥

सासु ससुर सारी औ सरहज सार भयो अति गुनवाला सुमि० ॥९॥

प्रेमिन औ परिवार की सुधि बुधि बिसरि गई मानहुँ व्याला सुमि० ॥१०॥

माँस खाय मदिरा को पीवैं तामस तन भभकै ज्वाला सुमि० ॥११॥

इधर उधर पर-दारन ताकैं जाय गिरैं गंदे नाला सुमि० ॥१२॥

जहाँ जाँय कूकुर सम डोलैं कामातुर अति बेहाला सुमि० ॥१३॥

घर की त्रिया रोज समुझावै कौन चलत हो तुम चाला सुमि० ॥१४॥

जो कोउ देखी सुनी कहीं कछु काह बताओ तब हाला सुमि० ॥१५॥

हमरी जियत में किहेव खराबी महा कठिन तुम विकराला सुमि० ॥१६॥

मातु पिता की नाक कटायो करिये तो अब ही ख्याला सुमि० ॥१७॥

हौ बे शरम लाज नहिं तुमको खाय मरौ विष का प्याला सुमि० ॥१८॥

ऐसे हाल होत बहु जग में तानि दीन मकरी जाला सुमि० ॥१९॥

भिक्षुक कोइ दरवाजे जावै क्रोध करैं डाटैं साला सुमि० ॥२०॥

यहाँ न मिली अनत को जा तू दया धरम यहँ नहिं चाला सुमि० ॥२१॥

पढ़े सुने का ज्ञान झूठ कहैं मुफ्त बजावत हैं गाला सुमि० ॥२२॥

सतसंगति जब कहुँ परि जावै करि लेवैं तब मुख काला सुमि० ॥२३॥

जाय शरनि सतगुरु की लीजै करो भजन फिर हों लाला सुमि० ॥२४॥

मानुष का तन पाय हाय क्यों फंस्यो मोह के तुम जाला सुमि० ॥२५॥

सुर निशि दिन चाहत हैं याको तौन पाय गयो तुम माला सुमि० ॥२६॥

अब जनि चूकौ करौ लड़ाई सदा नाम रहु मतवाला सुमि० ॥२७॥

कुँजी गुरू के पास से लैकर खोलि लेव आपन ताला सुमि० ॥२८॥

सूरति शब्द क खेल जानिकै फेरो मन का तुम माला सुमि० ॥२९॥

श्याम स्वरूप अनूप सुहावन सन्मुख हर दम नँदलाला सुमि० ॥३०॥

रोम रोम धुनि उठत नाम की अनहद बाजै बहुताला सुमि० ॥३१॥

मीन पिपील मार्ग को छोड़ो विहँग मार्ग की यह चाला सुमि० ॥३२॥

षट चक्कर तब वेधन होवैं कमल खिलैं सातौं लाला सुमि० ॥३३॥

पाँच तत्व के रंग हैं पांचे दरसैं तन मन मतवाला सुमि० ॥३४॥

पाँचों मुद्रा जानि जाव तुम कुण्डलिनी का भी हाला सुमि० ॥३५॥

इड़ा पिंगला सुखमन ह्वै गा तिरवेनी पहुँचौ लाला सुमि० ॥३६॥

ओंकार त्रिकुटी के ऊपर ब्रह्मा विष्णू शिव लाला सुमि० ॥३७॥

तीनों गुण के परे होय तब जानै वहँ का अहेवाला सुमि० ॥३८॥

करि स्नान मगन ह्वै बैठो नयन जीभ तहँ नहिं हाला सुमि० ॥३९ ॥

देखौ हरि के चरित मनोहर रहस करत सँग वृजबाला सुमि० ॥४०॥

शून्य भवन में लय ह्वै जाओ सुधि कछु रहै नहीं लाला सुमि० ॥४१॥

सोऽहं रूप ते रहत प्रभू तहँ अजब वहाँ का है हाला सुमि० ॥४२॥

हवा में हवा मिलै जैसे जब कौन बतावै कस हाला सुमि० ॥४३॥

निःअक्षर नहिं रूप रूप है सर्वोपरि हैं किरपाला सुमि० ॥४४॥

शून्य में शून्य रहत हैं ऐसे जैसे बतलायन हाला सुमि० ॥४५॥

जारी........