साईट में खोजें

६६ ॥ श्री महात्मा मूरखदास जी ॥


चौपाई:-

सब मत झूठअपन मत साँचा। झूठभाव यम देहि तमाचा ॥१॥

सब मत झूठअपन मत झूठा । यही भाव सब जगत है रूठा ॥२॥

सब मत साँच अपन मत साँचा। यही भाव ते लगै न आँचा ॥३॥

सब मत साँच अपन मत झूठा। यही भाव ते पैहौ लूठा ॥४॥


दोहा:-

खोटा खोटा सब कहैं खोटा लखै न कोय ।

जो अपनी खोटी कहै तो काहे को खोटा होय ॥१॥

साँचा साँचा सब कहैं साँचा लखै न कोय ।

आठपहर साँची कहै तब वह साँचा होय ॥२॥

सब ईश्वर का रचा है झूठ साँच सँसार ।

या से दृढ़ विश्वास करि पकड़ौ शब्द रकार ॥३॥


कजरी:-

हाय राम यह चंचल मनुआं हर दम करता है हैरान ॥१॥

छिन पल कल नहिं लेन देत है ऐसा है शैतान ॥२॥

पाँचों चोर नींद जमुआई सब ऊपर दीवान ॥३॥

भजन में विघन करत है अहमक इधर उधर दौरान ॥४॥

काह करौं कछु बस न चलत है व्याकुल रहते प्रान ॥५॥

आलस नींद को छोड़ देत वह जमुहाई को वान ॥६॥

बाय बाय मुख व्याकुल ह्वै जाय सब शरीर अकुलान ॥७॥

देय सोवाय अधम अति कपटी अपनै राखै मान ॥८॥

है असवार द्वैत घोड़े पर यासे अति बलवान ॥९॥

बुध्दि लगाम पुरानी ह्वै गै मुरचा अति लपटान ॥१०॥

नाना विधि की लिये वासना खेल करत है ज्वान ॥११॥

पकड़ि जकड़ि हमको वह लीनो जिमि सय्याद पुरान ॥१२॥

नर्क को पठवै छोड़ै नाहीं जहँ पर दुख की खान ॥१३॥

मानुष का तन सुरन को दुर्लभ तामे विप्र महान ॥१४॥

बिन सतगुरु की शरण गये अब खुलैं न आँखी कान ॥१५॥

सूरति शब्द की जाप और गुरु बतलावैं सँग ध्यान ॥१६॥

नाम रूप परकाश दशालय खुलि जावै असमान ॥१७॥

दीन भाव ह्वै आप को मेटौ प्रेम लगै हो ज्ञान ॥१८॥

शान्ति शील संतोष छिमा अरु श्रध्दा तब उर आन ॥१९॥

दया धर्म कबहूँ नहिं छूटै जब लगि घट में प्रान ॥२०॥

राम नाम धुनि रोम रोम ते हर शै से हो जान ॥२१॥

श्याम स्वरूप रहैं तब सन्मुख जो हैं पुरुष प्रधान ॥२२॥

मन स्थिर सब स्थिर ह्वै गये मिटि गई शेखी सान ॥२३॥

देवासुर संग्राम जीत सब घट ही में लेव जान ॥२४॥

भीतर बाहर एकै दरशै है यह ब्रह्मज्ञान ॥२५॥

ऐसे गुरु के ऊपर करिये तन मन धन कुर्बान ॥२६॥

सत्य पदारथ जिन यह दिन्यौ आवागमन नसान ॥२७॥

मिटी करम गति गुरु किरपा से यम दुखिया खिसियान ॥२८॥

दूरहिं ते अब करै दण्डवत मानहुँ मोल बिकान ॥२९॥

सबै पदारथ पास आपके छूटै जब अभिमान ॥३०॥

तब सब प्राप्त होय नहीं देरी सत्य कहौं लेव जान ॥३१॥

ढूंढ़े कहूँ अन्त नहि मिलिहै मुफ्त होत हैरान ॥३२॥

वेद शास्त्र सुर मुनि सब को मत गुरु बिन मिलै न ज्ञान ॥३३॥

धोके में क्यों उमिरि बिताओ झूठै कथि कथि ज्ञान ॥३४॥

जौन मार्ग तुम जानत नाहीं पढ़ि सुनि चरचा ठान ॥३५॥

औरन को समुझावन के हित बनते हो बुधिमान ॥३६॥

वाह वाह ह्वै मान बड़ाई फूले नहीं समान ॥३७॥

कब तक रहि हौ कहौ जगत में बनकर तुम शैतान ॥३८॥

कपटक कार बुरा है भाई पूरा नर्क निशान ॥३९॥

आना जाना कभी न छूटै साँची लीजै मान ॥४०॥

जारी........