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६६ ॥ श्री महात्मा मूरखदास जी ॥

जारी........

राम नाम जपि बरी होहु नहिं जम के हाथ बिकान ॥४१॥

करि अभ्यास जियत में देखौ पावौ पद निर्वान ॥४२॥

अन्त समय साकेत में जावो बैठि के सुभग विमान ॥४३॥

राम ब्रह्म ढिग बैठक पावो जहँ सब सुख की खान ॥४४॥

राज योग यह अगम सुगम अति गुरु किरपा हम जान ॥४५॥

या ते तुमको हम समुझायन सब योगन की जान ॥४६॥

मूरखदास कहैं कर जोरे लेव वचन मम मान ॥४७॥

ताली श्री सतगुरु के पास में दीन्हीं कृपानिधान ॥४८॥


पद:-

मन स्थिर ह्वै जा सारे ॥१॥

अगनित जनमन ते सँग लागे जन्मत मरत न हारे ॥२॥

काम क्रोध मद लोभ मोह लिये विरथा खेल पसारे ॥३॥

शुभ कारज तेहि नीक न लागत कुकरम में पगु धारे ॥४॥

है बेशरम लाज नहिं तनकौ अधम कुटिल हत्यारे ॥५॥

चंचल गति तजि अचल सुखी ह्वै बैठु तबै सुख पा रे ॥६॥

सूरति के संग लागि शब्द सुनु ररंकार धुनि प्यारे ॥७॥

अनहद बाजा हर दम बाजै किंगरी वेनु सितारे ॥८॥

श्याम सलोने हर दम सन्मुख उपमा अमित अपारे ॥९॥

शून्य भवन में लय ह्वै जा तू सुधि बुधि सबै भुला रे ॥१०॥

अमित भानु छबि वरनि सकै को दर्शै अजब बहारे ॥११॥

नाम रूप परकाश दशालय पाय गये सुखसारे ॥१२॥

जियतै मुक्ति भक्ति सब मिलिगै आवागमन नसा रे ॥१३॥

हर दम मगन रहौ हरि रंग में गुरु किरपा उर धारे ॥१४॥

अंत समय साकेत को चलिये बैठिविमान सुखारे ॥१५॥

राम ब्रह्म ढिग बैठक लीजै अनइच्छित ह्वै जा रे ॥१६॥

श्याम सरूप बनाय कृपानिधि कुंडल मुकुट सँवारे ॥१७॥

कर गहि हँसि दुलराय सिंहासन ऊपर लै बैठारे ॥१८॥

अमृत प्याय मौन करि दीन्हों प्रतिमा ज्यों पधरारे॥१९॥

मूरखदास कहैं यह वानी धनि धनि भाग्य हमारे ॥२०॥


दोहा:-

मन अब ह्वै स्थिर गयौ आप को करूँ प्रणाम ।

आप की किरपा ते भयो सब मम पूरन काम ॥१॥

यम जूती सिर पर चलै जे न भजहिं रघुनाथ ।

मुक्ति भक्ति जियतै मिलै भजहु जानकीनाथ॥२॥

मन स्थिर जब तक नहीं तब तक होय न काज ।

मन स्थिर जब ह्वै गयौ नाम खुल्यौ दुख भाज ॥३॥

राम नाम एकतार जब ज्ञान भानु उजियार ।

महिमा अपरम्पार है सन्मुख रूप निहार ॥४॥

नाम हमार दुलार का धरयो गुरु सतमान ।

जिनकी कृपा कताक्ष ते खुलिगे आँखी कान ॥५॥

मूरखदास के वचन को सुनिये सब करि गौर ।

सबै देव हमसे कह्यो राम नाम सिर मौर ॥६॥


शेर:-

नाम औ रूप परकाश लय होता है ।

संचित प्रारब्ध क्रियमान नाश होता है ॥१॥

कहते हैं दास मूरख वह जन्म जन्म रोता है ।

जो राम नाम जाने बिन जिन्दगी को खोता है ॥२॥


पद:-

गगन धुनि अनहद बाजै भाई ॥१॥

प्रेम बिना साधन सिधि होय न कीजै कोटि उपाई ॥२॥

मन स्थिर सूरति संग लाग्यौ ररंकार सुनि पाई ॥३॥

रोम रोम ते धुनि हर शय से कानन भनक समाई ॥४॥

राम श्याम छवि कहि न सकौं कछु हर दम देत देखाई ॥५॥

अनहद पहिले एक में बाजैं फेरि विलग फरि आई ॥६॥

मुरली संख सितार किनावर डफ मिरदंग सुहाई ॥७॥

खंजरी ढोलक किंगरी तबला बाजत है सहनाई ॥८॥

जारी........