६७ ॥ श्री महात्मा नित्यानन्द जी ॥
दोहा:-
सूरति लागी शब्द में तन मन हरि के पास ।
मन जब तक स्थिर नहीं घर बन सबै उदास ॥१॥
शब्द शब्द में प्रेम है प्रेम प्रेम में शब्द ।
रूप प्रेम में शब्द है प्रेम रूप में शब्द ॥२॥
६८ ॥ श्री स्वामी रामानन्द जी के शिष्य
श्री योगानन्द जी पुजारी ॥
दोहा:-
श्री गुरु पद वन्दन करौं जिन यह दीनों ज्ञान ।
सूरति शब्द कि जाप सों करौं समाधी ध्यान ॥१॥
सीता रमन के पदन का निसि दिन कीजै ध्यान ।
राधा रमन हमार अब करौ सदा कल्यान ॥२॥
लक्ष्मी रमन दयाल हौ पालो सब संसार ।
गिरिजा रमन सुधारिहौ बिनवौं बारम्बार ॥३॥
श्री ब्रह्मा जी आप हौ सृष्टि के कर्ता नित्य ।
चरण कमल वंदन करौं हरि पद लागै चित्त ॥४॥
सब देवन सब तीर्थन सब शक्तिन शिरनाय ।
सब ऋषियन सब मुनिन को सब जीवनहिं मनाय ॥५॥
सब ईश्वर का रूप है जानि लेय जो कोय ।
गुरु किरपा ते जगत में आवागमन न होय ॥६॥
नित्य क्रिया का हाल कछु तुम से कहौं सुनाय ।
तुम पर गुरु किरपा करी दीनों शब्द बताय ॥७॥
बारह ऊपर दुइ बजैं उठै शौच को जाय ।
गणेश क्रिया करि साफ़ ह्वै उठै चित्त हर्षाय ॥८॥
मिट्टी अच्छी जगह की हाथ पाँव ले धोय ।
परभाती सुन्दर चही द्वादश अंगुल होय ॥९॥
करै दन्त धावन तबै जिह्वा करिकै ठीक ।
मल मुख में कछु न रहै तब न होय मुख फीक ॥१०॥
कुवां नदी या ताल में तब करिये अस्नान ।
मल मल धोय शरीर को आलस सबै नशान ॥११॥
साफी से पोछन करै शिर से पग तक देह ।
बदलि लंगौटी धोय करि तब जावै फिरि गेह ॥१२॥
जल से पग धोवन करै सूर्य जलांजलि देय ।
गायत्री को पढ़ै तब चित्त शुध्द करि लेय ॥१३॥
तब फिर गुरु का ध्यान करि नैनन को करि बंद ।
सुन्दर गुरु के दरश हों पूरण रामानन्द ॥१४॥
राम मंत्र की जाप में बैठ जाय ह्वै शान्ति ।
ध्यान समाधी करै जब छूटि जाय सब भ्रान्ति ॥१५॥
कहन सुनन के परे है देखि लेइ हिय हेरि ।
गुरु दयाल किरपा करैं छूटै मोरि व तोरि ॥१६॥
तब फिर धोती पहिरि के जाय गुरु के पास ।
करै दण्डवत गुरु की राखै दृढ़ विश्वास ॥१७॥
पांच परीकरमा करै चरणोदक तब लेइ ।
करै दण्डवत फेरि तब शिर चरनन धरि देइ ॥१८॥
आशिर्वाद को लेइ तब पहुँचै ठाकुर पास ।
करै दण्डवत दीन ह्वै राखौ अपने पास ॥१९॥
छोटी घंटी लेई तब धीरे देइ बजाय ।
कपड़ा ओढ़े जौन हों कर से देइ हटाय ॥२०॥
ठाकुर जागे देखि के कुल्ला देइ कराय ।
साफी से मूँह पोछिये मन अन्तै नहिं जाय ॥२१॥
पिर कुल्ला करवाइये तुलसी दल फिर लाय ।
जारी........