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६७ ॥ श्री महात्मा नित्यानन्द जी ॥

जारी........

आप मंत्र औ आप यंत्र हैं आपै तन्त्र कहायो जी ॥४३॥

सब आपै में आपै सब में आपै आप दिखायो जी ॥४४॥

राम नाम जपि राम नाम जपि राम नाम हम पायो जी ॥४५॥

अगम अगम अति अगम अगम अति निगम नेति गोहरायो जी ॥४६॥

सुगम सुगम अति सुगम सुगम अति गुरु किरपा हम पायो जी ॥४७॥

राम विष्णु औ कृष्ण एक हैं दुविधा दूर भगायो जी ॥४८॥

अनहद बाजन हद्द नहीं है को मुख से कह पायो जी ॥४९॥

धुनि सुनि मगन रहत हिय हरदम भूख प्यास बिसरायो जी ॥५०॥

शब्द रकार खुला हरि सन्मुख सो सुख वरनि न जायो जी ॥५१॥

षट चक्कर बेधन सब ह्वै गये सातों कमल फुलायो जी ॥५२॥

ओंकार त्रिकुटी के ऊपर शिव ब्रह्मा हरि पायो जी ॥५३॥

चन्द्र सूर्य दोउ एक में ह्वै गये सुखमन घाट नहायो जी ॥५४॥

सुखमनि नाड़ि में नाड़ि चित्रणी वज्रणि तामे कहायो जी ॥५५॥

ताके अभयन्तर धुनि होती सब सुर तहाँ लोभायो जी ॥५६॥

भीतर बाहर खुल्यौ एक रस रोम रोम सुनि पायो जी ॥५७॥

पच्छिम दिशा से चलिकै जावै शून्य समाधि लगायो जी ॥५८॥

जहँ नहिं रूप रेख रंग कछु है सोइ शून्य कहायो जी ॥५९॥

रूप अनूप औ रूप नहीं है सर्वेश्वर कहलायो जी ॥६०॥

एक अनेक अनेक एक फिरि नहीं औ सब में पायो जी ॥६१॥

तीनों गुण का फाटक खुलिगा तब साकेत मंझायो जी ॥६२॥

गउ लोक वैकुण्ठ जो चारों सब देखन में आयो जी ॥६३॥

महा प्रलय का खेल देख हम श्री गुरु किरपा पायो जी ॥६४॥

कबीर दास रैदास को श्री गुरु यही मार्ग बतलायो जी ॥६५॥

कह्यो दोउ जन मार्ग चलाओ यह अति सुलभ उपायो जी ॥६६॥

सर्गुण निर्गुण दोनों जानो जो सुर मुनि मन भायो जी ॥६७॥

या के वै अधिकारी होवैं जिन अभिमान मिटायो जी ॥६८॥

सब से नीचा बनै जौन जग सो ऊँचा पद पायो जी ॥६९॥

वही एक फिर वही वही सब वही वही दर्शायो जी ॥७०॥

श्री गुरु सेवा में तन मन धन कुर्बानी करवायो जी ॥७१॥

अभेद अखेद भयो जब सुनिये तब यह पदवी पायो जी ॥७२॥

गुरु शिष्य उर एक भयो तब अनुभव मेल मिलायो जी ॥७३॥

अब बाकी कछु रह्यो नहीं जब निज स्वरूप को पायो जी ॥७४॥

सृष्टी की मर्याद जौन है सुर मुनि सब ने गायो जी ॥७५॥

बिना गुरु के पार न पै हौ कीजै कोटि उपायो जी ॥७६॥

आपै कहैं सुनैं औ समुझैं आपै खेल बनायो जी ॥७७॥

आपै आप आप हैं आपै आपै आप समायो जी ॥७८॥

राज योग सब योगन की जड़ श्री गुरु किरपा पायो जी ॥७९॥

योगानन्द कहैं यह वानी हम तुमको समुझायो जी ॥८०॥


दोहा:-

गायत्री के मंत्र को जपिये माला एक ।

राम मंत्र की जाप को दस माला की टेक ॥१॥

श्री जानकी मंत्र को जपिये माला पाँच ।

राम सिया के दर्श हों वचन मानिये साँच ॥२॥

थोड़ी जाप में प्रेम से तन मन लागै जान ।

बहुत जाप में मन चपल इधर उधर भटकान ॥३॥

थोड़े नेम में प्रेम है बहुत नेम में नाहीं ।

योगानन्द यह कहत हैं जानि लेहु मन माहिं ॥४॥

मन स्थिर तो होत है थोड़ी जाप औ पाठ ।

या से थोड़ा कीजिये बहुत न बाँधौ ठाठ ॥५॥

पाठ जाप में जब तलक मन लागै सुनि लेहु ।

तब तक तो करिये उसे नाहीं तो धरि देहु ॥६॥

मन स्थिर जब तक नहीं नाम सिद्धि नहिं होय ।

मन स्थिर जब ह्वै गयो नाम खुल्यौ धुनि होय ॥७॥

जारी........