१२७ ॥ श्री भीष्म पितामह जी ॥
दोहा:-
कुरुक्षेत्र के युध्द में हम मन में प्रण कीन ।
अस्त्र गहै हौं प्रभू से हरि वैसे करि दीन ॥१॥
ऐसे दीन दयाल हैं भक्त की राखैं टेक ।
साँचा ह्वै कर रहे जो देर करैं नहिं नेक ॥२॥
दोहा:-
कुरुक्षेत्र के युध्द में हम मन में प्रण कीन ।
अस्त्र गहै हौं प्रभू से हरि वैसे करि दीन ॥१॥
ऐसे दीन दयाल हैं भक्त की राखैं टेक ।
साँचा ह्वै कर रहे जो देर करैं नहिं नेक ॥२॥