१३२ ॥ श्री भगीरथ जी ॥
दोहा:-
राम नाम परभाव को, जानि लेय जग जौन ।
कहन सुनन की बात क्या, बैठि रहै मुख मौन ॥१॥
सोरठा:-
दुर्लभ तन को पाय, जे न राम को भजहिं नर ।
उद्यम करै औ खाय, बार बार ते होहिं खर ॥१॥
पर स्वारथ करि लेव, नाम भजौ तब सुख मिलै ।
राम धाम फिर लेव, साका तुमरी जग चलै ॥२॥