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१३६ ॥ श्री राघवानन्द जी ॥


दोहा:-

राम नाम गुरु से मिलै, जानि लेय यह खेल ।

हरि हर दम लीला करैं, खेलैं खेल अकेल ॥१॥

जा को सब में भाव सम तासों हरि से मेल ।

गुरु आज्ञा शिर पर धरै यह सिध्दान्त अपेल ॥२॥