१८६ ॥ श्री सत्यभामा जी ॥ दोहा:- नाम खुले बिन मुक्ति नहिं, मुक्ति बिना नहि भक्ति । राम आपने मुख कही, जानि लेहु यह युक्ति ॥१॥