१८७ ॥ श्री कौशिल्या जी ॥ दोहा:- बैकुण्ठ रूप के दर्श ते, मुक्ति भक्ति हो नाम । नाम खुले आनन्द तब, हम से कह्यौ है राम ॥१॥