२०१ ॥ श्री रुक्मिणी जी ॥
दोहा:-
कहे सुने ते होय नहीं, साधन ते ह्वै जाय ।
गुरु किरपानिधि कृपा करि, जबहिं देहिं बतलाय ॥१॥
नाम यथारथ जब खुलै, रोम रोम सुनि लेहु ।
हरि हरदम सन्मुख रहैं, वास पास में लेहु ॥२॥
दोहा:-
कहे सुने ते होय नहीं, साधन ते ह्वै जाय ।
गुरु किरपानिधि कृपा करि, जबहिं देहिं बतलाय ॥१॥
नाम यथारथ जब खुलै, रोम रोम सुनि लेहु ।
हरि हरदम सन्मुख रहैं, वास पास में लेहु ॥२॥