२०३ ॥ श्री कुब्जा जी ॥
दोहा:-
नाम महातम है बड़ा, कहौं कहां लगि तात ।
सुर मुनि सब सुमिरन करैं, सबै ठौर विख्यात ॥१॥
राति दिवस सुमिरत रहूँ, देखे बिन अकुलाउँ ।
एक दिवस हरि मिलि गये, दीन पीठ पर पाउँ ॥२॥
कूवर मम सूधो भयो, जानत है सब जक्त ।
छिन में किरपा करत हैं, जब हो सांचा भक्त ॥३॥