२०४ ॥ श्री गणिका जी ॥
दोहा:-
सुआ पढ़ायो प्रेम ते, सांची करिके प्रीति ।
और कछू जान्यौ नहीं, राम नाम की रीति ॥१॥
अन्त समय मैं यान चढ़ि, हरि ढिग पहुँची जाय ।
सुर मुनि सब जै जै करैं, वास पास में भाय ॥२॥
दोहा:-
सुआ पढ़ायो प्रेम ते, सांची करिके प्रीति ।
और कछू जान्यौ नहीं, राम नाम की रीति ॥१॥
अन्त समय मैं यान चढ़ि, हरि ढिग पहुँची जाय ।
सुर मुनि सब जै जै करैं, वास पास में भाय ॥२॥