२०६ ॥ श्री यमन जी ॥
दोहा:-
डोलडाल बैठा रह्यौं, सुअर एक गो आय ।
पीछे से मार्यौ मुझे, घाव भयौ अति भाय ॥१॥
गिरत समय मुख से कह्यौं, मारे अरे हराम ।
देह छोड़ि तुरते गयौं, पहुँचि राम के धाम ॥२॥
सीधा नाम जे जपहिं नर, करिके मन विश्वास ।
तब काहे को होय फिरि, कबहुँ नरक में वास ॥३॥
नाम जपै सब दुख मिटै, जब हो सांची प्रीति ।
तब हरि के ढिग वास हो, युगन युगन यह रीति ॥४॥