साईट में खोजें

२११ ॥ श्री नन्दन वन जी ॥


दोहा:-

राम नाम परताप ते, कन्द फूल फल देउँ ।

संतन के दर्शन मिलैं, और कछु नहिं लेउँ ॥१॥

संतन की किरपा रहै, हरा भरा मैं नित्य ।

सत्य वचन मैं कहत हौं, होय न मोर अनित्य ॥२॥