२१८ ॥ श्री राजा बलि जी ॥
सोरठा:-
मेटि सकै तेहि कौन, जो चाहै सो हरि करैं ।
रही बात अब कौन, सन्मुख नित दर्शन करैं ॥१॥
बावन रूप बनाय, आये छलने छलि गये ।
काह कहौं अब भाय, लीला करते नित नये ॥२॥
प्रभु की गति को जान, वे अनाथ के नाथ जी ।
मानो वचन प्रमान, सब से न्यारे पास जी ॥३॥