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२१९ ॥ श्री शेख सादी जी ॥


गज़ल:-

सलोने श्यामसुंदर जी सबों के प्राण प्यारे हैं ॥१॥

कहीं पर धनुष कर सोहैं कहीं मुरली को धारे हैं ॥२॥

वसन भूषन गले माला सुघर मणियों के डारे हैं ॥३॥

अलकैं काली व घुँघवारी जो रुखसारों नजारे हैं ॥४॥

कानो कुण्डल हैं अनमोले मुकुट सिर पर सँवारे हैं ॥५॥

देखि कै सुर व मुनि मोहैं जड़े अनुपम सितारे हैं ॥६॥

बरनि छवि क्या सकै कोई अमित छवि रूप वारे हैं ॥७॥

करैं दीदार वह हर दम वही नैनों के तारे हैं ॥८॥

खेल करते खेलाते क्या वही लीला पसारे हैं ॥९॥

वही हरदम सबों में हैं वही फिर सबसे न्यारे हैं ॥१०॥

उन्हीं का अंश सब जानौ वही सब रचने वारे हैं ॥११॥

करौ अब बैर किस से तुम सभी भाई तुम्हारे हैं ॥१२॥

दिया मानुष का तन हरि ने नहीं तुमको बिसारे हैं ॥१३॥

करोगे गर जो बदमासी जाय दोजख में पारे हैं ॥१४॥

मिलौ मुरशिद से जा करके लगावैं वै किनारे हैं ॥१५॥

शेखसादी करैं विनती हम तन मन उनपै वारे हैं ॥१६॥


शेर:-

पैगम्बर मोहम्मद साहब लिक्खा कुरान जानो ।

चौंसठि घड़ी में सुनिये मेरा वचन यह मानो ॥१॥

तन मन से प्रेम करिके हर दिन पढ़ै जो कोई ।

कहते हैं शेखसादी तो भिश्त वाको होई ॥२॥

रोजा नमाज करिये धीरज को मन में धरिये ।

मुरशिद बिना न मिलते वह हर जगह में रहते ॥३॥

छोड़ो दुई को प्यारे होंवैंगे काम सारे ।

मिलिहैं वह तुमको प्यारे मानो वचन हमारे ॥४॥

दिल को किसी के सुनिये दुखाना न तुम कभी ।

यह बात अपने दिल से मिटाना न तुम कभी ॥५॥

हर शै में देख लीजै उसका ही नूर है ।

तिल भर नहीं है खाली हर दम हुजूर है ॥६॥

है सब में सब से न्यारा मानो वचन हमारा ।

श्री कौशिला क प्यारा यशुमति कहै दुलारा ॥७॥

कहते खुदा हैं उसको खुद आने वाला जानो ।

है फिक्र सब की उसको खुद खाने वाला जानो ॥८॥

जिसका है नाम सुनिये उसका है रूप गुनिये ।

सूरति शब्द में लागै तब तन मन हरि में पागै ॥९॥

देखैं हम रूप हर दम कहने की क्या रहै गम ।

धुनि रोम रोम जारी छूटै जगत से यारी ॥१०॥

कहते हैं शेखसादी मुरशिद के पास जाओ ।

तन मन से प्रेम कीजै तब इसका भेद पाओ ॥११॥