२३० ॥ श्री राजा नल जी ॥
दोहा:-
मैं पत्नी के दुख सह्यौ, कहि न सकौं अति घोर ।
सीता रमन कृपा करी, दीन पास ही ठौर ॥१॥
सहे कष्ट जो कछु परै, करि मन को सन्तोष ।
तब काहे नहिं हरि मिलैं, जब होवै निर्दोष ॥२॥
दोहा:-
मैं पत्नी के दुख सह्यौ, कहि न सकौं अति घोर ।
सीता रमन कृपा करी, दीन पास ही ठौर ॥१॥
सहे कष्ट जो कछु परै, करि मन को सन्तोष ।
तब काहे नहिं हरि मिलैं, जब होवै निर्दोष ॥२॥