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२३१ ॥ श्री राजा दधिचि जी ॥


सोरठा:-

पर स्वारथ के काज मैं शरीर आपन दियौं ।

नाम लेयँ सब आज, राम धाम को मैं गयौं ॥१॥


दोहा:-

राम नाम निसि दिन जपै, पर स्वारथ करि लेय ।

जग में कोई पुरुष को, दुःख कबहुँ नहिं देय ॥१॥

अन्त समय हरि पुरी को सिंहासन चढ़ि जाय ।

सुर मुनि सब जै जै करैं, हा हा कार सुनाय ॥२॥