२३९ ॥ श्री शुक्राचार्य जी ॥
दोहा:-
राम आपने खेल को, आपै जानन हार ।
और किसी की गति नहीं, सुनिये वचन हमार ॥१॥
जाको देयँ जनाय कछु, सो होवै भवपार ।
या से हरि सुमिरन करै, छोड़ि कपट व्यवहार ॥२॥
दोहा:-
राम आपने खेल को, आपै जानन हार ।
और किसी की गति नहीं, सुनिये वचन हमार ॥१॥
जाको देयँ जनाय कछु, सो होवै भवपार ।
या से हरि सुमिरन करै, छोड़ि कपट व्यवहार ॥२॥