२४२ ॥ श्री दत्तात्रेय जी ॥
दोहा:-
दत्तात्रयी नाम है, सुनो पुत्र हर्षाय ।
राम नाम कि धुनि खुलै, विहँग मार्ग ह्वै जाय ॥१॥
निर्गुन सर्गुन निराकार, औ शून्य समाधी आप ।
नर्क स्वर्ग गोलोक औ, साकेत पुरी में आप ॥२॥
अपनै आप को जपत हैं, सब में आपइ आप ।
सत्य पुरुष से भेद यह, जान मानिये आप ॥३॥