२४३ ॥ श्रीमद् गोस्वामी तुलसी दास जी ॥
दोहा:-
दिव्य लेखनी हर दियो, तन मन अति हर्षान ।
भोज पत्र पर मैं लिख्यौं अक्षर स्वर्ण समान ॥१॥
भोज पत्र ब्राम्ह्ण वरण शुकुल रंग को जान ।
श्री नारद लाये रहे उत्तर खंड से मान ॥२॥
रामायण जाको कहत, राम ब्रह्म स्थान ।
पढ़ै सुनै जो प्रेम करि तिनको हो कल्यान ॥३॥
तुलसी दास है नाम मम जानौ नाम प्रभाव ।
बिना नाम जाने कोई मुक्ति भक्ति नहिं पाव ॥४॥