२४७ ॥ श्री नाभा जी ॥
दोहा:-
जगत हेतु मानस रच्यौ, सांचे हरि के दास ।
जगत माहिं विख्यात है, नाम है तुलसीदास ॥१॥
गोस्वामी ताको कहत, इन्द्रिन मालिक होय ।
मन जीतै वश में करै, गोस्वामी सो होय ॥२॥
सोरठा:-
नाभा करैं पुकार, बिना भजन ह्वै है नहीं ।
मानो वचन हमार, सुर मुनि संतन यह कही ॥१॥