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२४८ ॥ श्री कबीरदास जी ॥

॥ श्री कैलाश वर्णन ॥


दोहा:-

कहौं हाल कैलाश का, सुनिये कान लगाय ।

निज नैनन देखा अहै, सो कछु देउँ लिखाय ॥१॥


चौपाई:-

है कैलाश शम्भु शुभ धामा । गणन सहित करते विश्रामा ॥१॥

राम नाम के जानन हारे । जिन सब जगत प्रचार प्रचारे ॥२॥

हैं आचार्य नाम के भाई । दरशन ते दुख दूरि पराई ॥३॥

बीज मन्त्र हर जपत हमेशा । सब जीवन जो प्राण हमेशा ॥४॥

पारवती को आप सुनायो । सोय गईं माता नहिं पायो ॥५॥

बट के पेड़ में छेद पुरानो । ता में कीरक अण्डा जानो ॥६॥

और सवन शिव दीन भगाई । अण्डा कहो कहां उड़ि जाई ॥७॥

अण्डा में सब शब्द समाना । फूटि गयो बनि सब सामाना ॥८॥

देन हुँकारी लाग्यौ प्यारी । तब जागी गिरिराज कुमारी ॥९॥

कह्यो फेरि कहिये भगवाना । सोय गई मैं कृपा निधाना ॥१०॥

भेद कछू मैं जानि न पाई । या से विनय करौं शिर नाई ॥११॥

कह्यौ शम्भु दूसर को प्रानी । देत हुंकारी मम मन मानी ॥१२॥

धरि कै ध्यान देखि हरि लीना । जानि गये हरि की गति झीना ॥१३॥

दौरे हर तिरशूल को लीना । उड्यो कीर अति परम प्रवीना ॥१४॥

व्यास के घर में पहुँच्यौ भाई । लीन व्यास पत्नी जम्हुआई ॥१५॥

तुरतै मुख ह्वै उदर में जाई । बन्द भई तब फिर जम्हुआई ॥१६॥

तब पहुँचै शिव वहँ पर भाई । कह्यौ कि चोर हमारा आई ॥१७॥

व्यास ने बार बार सिर नाई । हाथ जोड़िकै विनय सुनाई ॥१८॥

यहं कोइ चोर नहीं है स्वामी । आप कृपानिधि अन्तरयामी ॥१९॥


दोहा:-

कह्यौ शम्भु सुन लीजिये, तव पत्नी के पास ।

चोर हमारो है सही, कीन्ह गर्भ में वास ॥१॥


चौपाई:-

व्यास कह्यो जब प्रगटै स्वामी। तब लै जाहु नमामि नमामी ॥१॥

सुनत वचन शिव गै कैलाशा। कीन्ह उमा ते चरित प्रकाशा ॥२॥


दोहा:-

जन्म लेहिं शुकदेव मुनि श्री व्यास के धाम ।

यह लीला रघुनाथ की, बार बार परनाम ॥१॥


चौपाई:-

भगवत तत्व को जानहिं नीके। रहैं प्रिय सुर मुनि सब ही के ॥१॥

जीवन मुक्ति विदेह सदाई। असन वसन की नहि सुधि आई ॥२॥

माया व्यापै कबहूँ नाहीं। बारह वर्ष के रहैं सदा ही ॥३॥


दोहा:-

तारैं सुनो परिक्षित हीं, सातै दिन में जाय ।

श्री भागवत व्यास कृत, राम चरित्र सुनाय ॥१॥

बहुत काम जग को करैं, अजर अमर हैं जान ।

परमानन्द में हर समय, गिरिजा लीजै मान ॥२॥


चौपाई:-

सुनि हर वचन उमा सुख पावा। बार बार चरनन शिर नावा ॥१॥

जब चाहैं तब तौन जनावैं। हरि की गति कोइ जानि न पावैं ॥२॥

यहां व्यास की सुन्दर नारी। बढ्यौ गर्भ तब भईं सुखारी ॥३॥

बारह महीना बीति गये जब। तब आश्चर्य करन लागे सब ॥४॥


दोहा:-

ध्यान धर्यौ तब व्यास जी, जान्यौ गर्भ का हाल ।

बालक कमलासन किये, सुन्दर रूप विशाल ॥१॥

बालक ते तब व्यास जी, कह्यौ कहौ तुम कौन ।

निकसत नाहीं गर्भ से, बैठे हो मुख मौन ॥२॥


चौपाई:-

तब शुकदेव कहा सुन लीजै। भजन करन हमको अब दीजै ॥१॥

हमको यहँ आनन्द अति भारी। बाहेर हरि की माया प्यारी ॥२॥

आपका हम कछु नाहीं बिगारा। काहे बोलत बारम्बारा ॥३॥

जारी........