२५३ ॥ श्री वशिष्ठ जी ॥
दोहा:-
शुकुल पक्ष की चतुर्दशि दिवस रह्यौ गुरुवार ।
महिना अगहन जानिये, चरित विचित्र तयार ॥१॥
उनइससै नव्वे अहैं, सम्वत विक्रम जान ।
नाम वशिष्ठ हमार है, सत्य वचन यह मान ॥२॥
जगत जननि श्री जानकी, श्री राधा महरानि ।
करि किरपा हम से कह्यौ, सर्व गुनन की खानि ॥३॥
राम कृष्ण लीला करी, जौन भक्त के संग ।
आशिर्वाद हमार यह, लगै न दूसर रँग ॥४॥
दुइसै ब्यालिस चरित हैं, राम कृष्ण जो कीन ।
पुरी अयोध्या धन्य है, भयो चरित्र नवीन ॥५॥
उन्नीस सौ निन्नानवे, जब संवत लगि जाय ।
तब यह चरित छपाइये, साँची दीन बताय ॥६॥
सोरठा:-
जानि लेय गुरु पास, राम नाम अभ्यास करि ।
तन मन होय हुलास, तब देखै यह चरित फिरि ॥१॥