२५२ ॥ श्री स्वामी योगानन्द जी ॥
जारी........
नाम मध्यमा ते जप करते। मुख से हरि गुण गान उचरते ॥६॥
आठ भुजा त्रेता के जानौ। चारि भुजा द्वापर के मानौ ॥७॥
दोहा:-
तीनौ जन अस्तुति करैं, सुनिये सभा मँझार ।
भेद विलग होवै नहीं, ऐसी धुनि एकतार ॥१॥
बैठि जाँय तब वै वहाँ, उठैं कृष्ण भगवान ।
मुरली देयँ बजाय तहँ, सबहीं अन्तर ध्यान ॥२॥
यह लीला नित होत है, हरि इच्छा ते जान ।
साधन नाम को कीजिये, खुलि जावै अस्मान ॥३॥
राम विष्णु औ कृष्ण जी, भरत एक ही जान ।
शेष लखन शिव शत्रुहन, साँची लीजै मान ॥४॥
आँखी कान खुलैं जबै, तब कछु पावै जान ।
नाहीं तो जन्मै मरै, होवै नहिं कल्यान ॥५॥
कलियुग युग का वास है, इन्द्रपुरी हम जान ।
शूद्र वर्ण इनका अहै, मानौ वचन प्रमान ॥६॥
चौपाई:-
दुइ भुज इनके रूप कराला। नग्न बदन हैं बहुतै काला ॥१॥
अरुन नयन हैं बड़े बड़े दांता। लटकैं केश भूमि सुनु ताता ॥२॥
बायें कर में इन्द्री साधे। लोह गदा दाहिने कर काँधे ॥३॥
लटकै जीह अधर के खाले। जानि परै नागिन मुख पाले ॥४॥
राम नाम बैखरी उचारैं। जे न भजैं तिनको फटकारैं ॥५॥
कसैं बहुत जे भजन करत हैं। जे सांचे ते नहीं टरत हैं ॥६॥
जे डिग जायँ तिन्हैं धरि धमकैं। जे न डिगैं ते हरि ढिग चमकैं ॥७॥
दोहा:-
करैं परीक्षा जगत में, हरि भक्तन की जान ।
पास होयँ जे भक्त जन, करैं बहुत सन्मान ॥१॥
चौपाई:-
करैं प्रणाम रोज कलिराई। धनि धनि कहैं भक्त सुखदाई ॥१॥
राम नाम जे भजते नाहीं। नर्क को भेज देहिं रिसियाहीं ॥२॥
बारी बारी पर युग चारी। आवत जानौं जगत मँझारी ॥३॥
यह हरि खेल अकथ है भाई। जानहिं कछु जिन नाम को पाई ॥४॥
दोहा:-
सबै युगन में होत है कसनी लीजै मान ।
संस्कार जा को जौन, वैसै होवै जान ॥१॥
कपिल देव का अंश हूँ, नाम है योगानन्द ।
जगत मांहि विख्यात हैं, श्री गुरू रामानन्द ॥२॥
शिष्य उन्हीं का जानिये, सत्य वचन कहि दीन ।
रूप सदा सन्मुख रहे, सूरति शब्द में लीन ॥३॥
राम विष्णु औ कृष्ण जी, तीनौ शक्ती जान ।
हर दम दरशन होत हैं, सांची लीजै मान ॥४॥
चौपाई:-
देवन शक्तिन हैं बहु लोका। राम नाम जपि मेटौ शोका ॥१॥
हरि की गति को जानै भाई। छिन में करैं सुमेरु कि राई ॥२॥
श्री गुरु कृपा जानि कछु पाई। सो हम तुमको दीन लिखाई ॥३॥
दोहा:-
राम नाम सुखसार है, राम नाम सुखसार ।
तत्व यथारथ है यही, यही से हो निस्तार ॥१॥