२ ॥ श्री १०८ परमहंस राम मंगल दास जी महाराज ॥
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तब फिर नाभा जी भये, भक्त माल जिन गाय।
सतगुरु की सेवा करी, अनुभव दीन जगाय॥
तब फिर दादू जी भये, तत्व ज्ञान शिर मौर।
सुन्दर तिनके शिष्य भे, हरि चरनन की ओर॥
तब फिर जगजीवन भये, कोटवा ग्राम मँझार।
सत्य नाम को जगत में, कीन्हों है परचार॥
अब तो मोहन दास जी, भये कबीर की जोति।
तन मन धन ते जगत हित, बोय दीन जिन मोति॥
राम नाम विश्वास दृढ़, जिनके हिरदय माँहि।
होवै सब जग का भला या में संशय नाहिं।३०।
कबीरदास के पुत्र भे, पण्डित जवाहिर लाल।
सत्य वचन मम मानिये, जिनका नाम कमाल॥
पण्डित जवाहिर लाल सम, धनी और शौकीन।
हिन्दुस्तान में नहिं कोई, कैसे ह्वै गये दीन॥
त्याग इसी को कहत हैं, तन मन धन जिन दीन।
मनसा वाचा कर्मणा, रहत सदा लवलीन॥
जगत हेत अवतरित भे, सुन्दर पुरुष महान।
ऐसे पुरुषन के चरित, को करि सकै बखान॥
और महात्मा बहुत भे, हैं अरु होतै जांय।
सबहुन को परनाम है, बार बार शिर नाय।३५।
मुसलमान जे ह्वै गये, हैं अरु ह्वै हैं जानै।
पीर पैगम्बर औलिया, कुतुब रहैं मुख मौन॥
सब को मेरी बन्दगी, बार बार शिर नाय।
भूल चूक होवै क्षमा, कीजै सदा सहाय॥
कोई कुल में अवतरै, राम चरन रति होय।
अन्त समय हरिपुर बसै, आवा गमन न होय॥
भक्तन का कोई चरित, पढ़ै सुनै ह्वै शान्ति।
निश्चय वा के हृदय की, छूट जाय सब भ्रान्ति॥
पक्षपात को छोड़िकै, भजै रैन दिन नाम।
रोम रोम ते धुनि उठै, सन्मुख होवैं राम।४०।
शिव मारुत सुत कृपा करि, मोकौ आज्ञा दीन।
पाठ करन के हेतु मैं, यह चरित्र लिख लीन॥
व्यालिस दोहा लिख गये, कलम कीन अब बन्द।
सब देवन के दरश भे, छूटि गये दुख द्वन्द॥
गणन भेद जानत नहीं, सत्य कहौं गोहराय।
सज्जन सब मिलि कृपा करि, देखि के लेहिं बनाय।४३।
भजन:-
गणपति को प्रथमै करों वन्दन। मिलत सुक्ख दुख होत निकन्दन।१।
रिध्दि सिध्द सोहत संग जाके। भाल विशाल सिन्दूर को चन्दन।२।
अब हम पर नित दाया कीजै। वाहन मूष उमा के नन्दन।३।
ग़ज़ल:-
सुनिये विनय गजानन अब हम सुनाने वाले।
अब पार बेड़ा मेरा, तुम हौ लगाने वाले।
है मूष की सवारी औ डील डौल भारी।
देवन में आदि पूजन अपनी कराने वाले।
कवियों को कार्य्य सारो, बुद्धी मेरी सुधारो।
हिरदय में मेरे बसिये, आनँद बढ़ाने वाले।६।
ग़ज़ल:-
शरन मैं निशिदिन हूँ तेरी, सुनौ शारद महरानी जी।१।
बसौ हिरदय में आ मेरे, सकल गुण की निधानी जी।२।
तुम्हारे ही बदौलत से हुये कवि लोग ज्ञानी जी।३।
अरज मेरी सुनौ चित दै, कहौं मैं कछु कहानी जी।४।
भजन:- भजु राम नारायण विष्णु कृष्ण ब्रह्मा शिव गणपति शारद को।
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