२ ॥ श्री १०८ परमहंस राम मंगल दास जी महाराज ॥
जारी........
दफ़तर ज़िलों ज़िलों में, कपड़े बनैं मिलों में।
भारत के वासियों को सोते जगा रहे हैं॥
कर दी है डाक जारी भारत में चलती सारी।
तलवारें गुप्ती बल्लम सब को बँधा रहे हैं॥
इन्साफ़ खूब करते धीरज को मन में धरके।
क्या नीति ही कि बातें सब को सिखा रहे हैं।१०।
हरिनाम के सहारे होवैंगे काम सारे।
विश्वास अपने दिल में वह खुद जमा रहे हैं।
ऐसे समय में कोई ऐसा हुआ न होई।
छोटे बड़ों के दिल में कैसे समा रहे हैं।
छे पैसे का है भोजन सुन लीजिये यह सब जन।१५।
क्या ज़िन्दगानी अपनी सुख से बिता रहे हैं।
परस्वार्थ हेतु मरते सब लोग जै जै करते।
वह बैठि कर सिंहासन बैकुण्ठ जा रहे हैं।
कलियुग में सतयुग देखो, कहीं वेदहूँ न लेखो।
श्री गान्धी जी से रघुवर लीला करा रहे हैं।२०।
होगा स्वराज्य जानो मेरा वचन यह मानो।
अब थोड़े ही दिनों में, दिन अच्छे आ रहें हैं।
महिमा अपार जिनकी, वरनन करूँ क्या तिनकी।
थाकी हिये में शारद फणपति चुपा रहे हैं।
कायम रहे ज़िन्दगानी सुरसरि में जब लों पानी।२५।
और चाँद सूर्य्य जब तक नभ में दिखा रहे हैं।
परिवार में भी सुख हो, हरगिज़ कभी न दुख हो।
चिरजीवें सब हमेशा, अब हम मना रहे हैं।२८।