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१३ ॥ श्री मख्दुम शाह जी ॥


शेर:-

मुरशिद की खिदमत कर प्यारे, प्रेम पन्थ तब पावैगा।

षट चक्कर वेधन तव होवैं, आनन्द हिय न समावैगा।

खिल जाँय कमल सातों प्यारे, सब में फिर वही दिखावैगा।

अनहद बाजा बाजि रहे हैं, को मुख से कहि पावैगा।

कुण्डलिनी जाग्रत ह्वै जैहै सब सुर दरश दिखावैगा।५।

धुनि हर शै से फिर सुनिहै वह, और रोम रोम खुलि जावैगा।

शून्य भवन में लय जब ह्वै है, सुधि बुधि सबै भुलावैगा।

कहै मख्दुम शाह सुन लीजै, आवागमन मिटावैगा।८।